पुरालेख चित्र: (स्व.) मुकेश पांडेय अपने डॉक्टर माता-पिता संग

समकालीन जीवन में युक्त घोर तनाव ने पिछले सप्ताह एक और उज्जवल युवक का भोग ले लिया।  बिहार राज्य के बक्सर जिले के नवपदस्थापित जिलाधिकारी ३२-वर्षीय मुकेश कुमार पांडेय ने १० अगस्त (गुरुवार) को दिल्ली में आत्महत्या कर ली।

इस चरम निर्णय को कार्यान्वित करने के पूर्व उन्होंने अपने मित्रों अवं परिजनों को एक व्हाट्सएप्प सन्देश भेजा था. अंग्रेजी में लिखे इस सन्देश में उन्होंने कहा था:

मैं पश्चिमी दिल्ली स्थित जनकपुरी मोहल्ले में होटल पिकादिली के दसवें तल्ले से छलांग लगा कर आत्महत्या कर रहा हूँ। मैं जीवन से निराश हूं और मानवता से भी विश्वास उठ गया है।  मेरा सुसाइड नोट दिल्ली के होटल लीला पैलेस में नाईक के बैग में रूम नंबर ७४२ में रखा है।  मैं आप सबसे प्यार करता हूं, कृपया मुझे माफ कर दें।

हालांकि, वहां पुलिस के पहुंचने के बाद मुकेश कुमार पांडेय नहीं मिले। कुछ घंटे पश्चात उनके शव को गाजियाबाद स्टेशन से एक किलोमीटर दूर कोटगांव के पास रेलवे ट्रैक से बरामद किया गया।  शव दो भागों में कटा पाया गया।

अगले दिन उनके द्वारा रिकॉर्ड किया गया वीडियो भी पाया गया उनके मोबाइल फ़ोन पर:

उल्लेखनीय है कि 2012 में ऑल इंडिया में 14वीं रैंक लानेवाले, मूलतः छपरा के रहनेवाले मुकेश कुमार पांडेय की गिनती तेज तर्रार, बेदाग और कड़क अफसर के रूप में की जाती थी. उन्हें वर्ष 2015 में संयुक्त सचिव रैंक में प्रमोशन मिला था और 31 जुलाई, 2017 को बक्सर का जिलाधिकारी बनाया गया था।

जिलाधिकारी के पद को भारतवर्ष में सफलता का पर्याय माना जाता है। इस पर एक और सत्य कि वह एक उच्च-मध्यम परिवार से सम्बन्ध रखते थे।  आयु भी थी मात्र ३२। ऐसे में कोई व्यक्ति जीवन से निराश हो और उसका मानवता से विश्वास उठ गया जाए तो यह प्रश्न एक व्यक्तिविशेष का नहीं अपितु समस्त समाज का बन जाता है।

वीडियो में मुकेश कहते हैं कि वह अपनी पत्नी एवं माता-पिता के बीच नित्य होने वाली तर्क-वितर्क एवं तीखी छींटाकशी से परेशान हो गए थे। यद्यपि वह मानते थे कि इस विवाद का कारण है सभी का उनके प्रति प्यार, वह उस वीडियो में यह भी कह गए कि किसी भी वस्तु की अति आदर्श परिस्थिति नहीं होती।

पूर्ण रूप से सही अभिमत है उनका।

और इस वस्तु को अनेक परिपेक्ष्य में विचार करने की आवश्यकता है। भारतीय समाज में परंपरागत रूप से अति पुत्र प्रेम (जो आजकल अति पुत्री प्रेम में भी कई स्थितियों, विशेषतः नगरीय व्यवस्थाओ में, अनुभव किया जा रहा है), माता-पिता और पत्नी के बीच एक परंपरा-संबंधी अति अलगाव होना (जो आजकल परस्पर पहले प्रभुत्व स्थापित करने के मैदान का खेल भी बन गया है) इत्यादि चुनौतियां हैं जिससे हमारे समाज को एक नए दृष्टिकोण की सहायता से सुलझाना होगा – विशेष रूप से ऐसे कालखंड में जब भारत में भी संयुक्त परिवार की व्यवस्था के प्रति आस्था अवं सहिष्णुता सिकुड़ती जा रही है।

वीडियो में एक जो अत्यंत वैयक्तिक व्यथा का उल्लेख उन्होंने किया है वह तो आज के समाज को दर्पण में मानो स्वयं का एक बहुत ही विकृत स्वरुप दर्शित करता है। उन्होंने कहा कि वह बाल्यावस्था से ही बहुत अंतर्मुखी प्रकृति के रहे है, जो की उनकी पत्नी के स्वाभाव के बिलकुल विपरीत है और जिसके कारण उन दोनों में काफी विरोदाभास अवं कटुता की अनुभूति होती रही है।

यद्यपि उन्होंने एक व्यक्तिगत / दांपत्य जीवन के परिपेक्ष में वह बात कही है, सत्य तो यह है कि आज का समाज, आज के माता-पिता बचपन से ही अपनी संतान को ‘बोल्ड’, ‘कॉंफिडेंट’ तथा ‘एग्रेसिव’ – अर्थात निर्भीक, आत्मविश्वासी एवं जुझारू – व्यक्तित्व विकसित करने पर बल रखते हैं। और इस क्रिया के निर्माण बालक और बालिकाओं में कोई भेदभाव नहीं रखा जाता है। इन तीनों गुणों का आवरण करना अपने आप में अनुचित नहीं है परन्तु इन गुणों के उचित प्रसंग की शिक्षा न देने से शिशु प्रायः अनावश्यक रूप से टकराव वाली मनस्तिथि विकसित कर लेता है।  वह यह नहीं सीख / जान पाता है कि उन गुणों का निर्वाह किन सन्दर्भों में सर्वथा अनुचित है। परिणामतः उसके अविवेकी आचरण से वैयक्तिक, दाम्पत्य तथा सामाजिक जीवन में अकारण ही उथल-पुथल होती रहती है – जो उसे अचेतन थकान एवं तनाव की स्थिति में ले आता है।

दूसरी ओर, अंतर्मुखी प्रकृति वाले जन को प्रायः उनकी प्रतिभा से न तोल कर उनके स्वभाव के अनुरूप अवसर एवं सुविधाएं प्रदान करती हैं, जो उनके प्रति घोर अन्याय वाला कार्य है।  ऐसे लोग प्रायः समाज और परिवार रुपी परिसर के किसी सुदूर अथवा अंदरूनी घेरे में स्वयं को बंदी बना लेते हैं।  उन्हें बहुत कुछ अभिव्यक्त करना है परन्तु परिवार एवं समाज उन्हें ये समझकर कुछ पूछता नहीं कि वह कुछ बोलना पसंद ही नहीं करते।

इस कारण से दोनों जुझारू एवं अंतर्मुखी प्रकृति के जन प्रायः मानसिक तनाव की अनुभूति करते हैं – जिसका निवारण करना प्रथम परिजनों का और बाद में समाज का कर्त्तव्य है।

स्वर्गीय मुकेश पांडेय का दुखद निधन उनके स्वयं के लिए आत्महत्या है परन्तु समाज के लिए, आपके एवं मेरे लिए एक आत्ममंथन का कटु विषय है।

ईश्वर मुकेश जी की दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करे।

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